Monday 15 January 2018

पीलिया का घरेलु उपचार/इलाज (Piliya ka Gharelu Upchar)

पीलिया क्या है?
आप एक खुश और स्वस्थ जीवन चाहते हैं, तो अपने लिवर को स्वस्थ रखें, शराब से दूर रहें, सरल आहार का पालन करें और पीलिया के लिए जीवनशैली में परिवर्तन करें। पीलिया और अन्य लिवर विकारों से छुटकारा पाने के लिए आयुर्वेदिक उपचार का सहारा लें। 

रक्त में लाल कणों की आयु 120 दिन होती है। किसी कारण से यदि इनकी आयु कम हो जाये तथा जल्दी ही अधिक मात्रा में नष्ट होने लग जायें तो पीलिया होने लगता है। रक्त में बाइलीरविन नाम का एक पीला पदार्थ होता है। यह बिलीरुबिन लाल कणों के नष्ट होने पर निकलता है तो इससे शरीर में पीलापन आने लगता है। जिगर के पूरी तरह से कार्य न करने से भी पीलिया होता है। पत्ति जिगर में पैदा होता है। जिगर से आंतों तक पत्ति पहुंचाने वाली नलियों में पथरी, अर्बुद (गुल्म), किसी विषाणु या रासायनिक पदार्थों से जिगर के सैल्स में दोष होने से पत्ति आंतों में पहुंचकर रक्त में मिलने लगता है। जब खून में पत्ति आ जाता है, तो त्वचा पीली हो जाती है। त्वचा का पीलापन ही पीलिया कहलाता है।         
                                      पीलिया जिगर का विकार है, जिसके कारण त्वचा और आंखों का रंग पीला हो जाता है। हालांकि पीलिया के मामले में दवा महत्वपूर्ण है परंतु अपनी जीवन शैली में परिवर्तन और उचित आहार के सेवन से इस विकार से निजात पाया जा सकता है। 
                              
पीलिया के कारण - Jaundice Causes
पीलिया रोग मुख्यतः जब यकृत में से निकलने वाली पित्तवाहिनी के संगम स्थान पर रूकावट होने से पित्त पित्ताशय में न जाकर खून में मिल जाता है, तब यह रोग हो जाता है। इसके अतिरिक्त जिनके पेट और यकृत की अग्नि बिगड़ी रहती है और जो खट्टे, उष्ण, चटपटे तथा पित्त को बढ़ने वाले अन्य आहार का अधिक सेवन करते है उनका पित्त बढ़ जाता है, फिर यह रोग सामने उभर आता है।
                पीलिया का कारण बिलीरुबिन नामक पदार्थ है जिसका निर्माण शरीर के ऊतकों और रक्त में होता है। जब लिवर में लाल रक्त कोशिकाएं टूट जाती हैं, तब पीले रंग का बिलीरुबिन नामक पदार्थ बनता है। जब किसी परिस्तिथि के कारण यह पदार्थ रक्त से लिवर की ओर और लिवर द्वारा फिल्टर कर शरीर से बाहर नहीं जा पाता है, तो पीलिया होता है। अगर रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा 2.5 से ज्यादा हो जाती है तो लिवर के गंदगी साफ करने की प्रक्रिया रुक जाती है और इस वजह से पीलिया होता है। 

पीलिया के लक्षण

पीलिये का सबसे बड़ा लक्षण है त्वचा और आँखों के सफेद हिस्सों का पीला हो जाना। इसके अलावा, पीलिया के लक्षणों में बुखार रहना, चक्कर आना, आँखों का पीला दिखना/होना, आँखों के आगे अँधेरा छाना, शरीर का पीला होना, पेशाब पीला होना, जीभ पर अंकुर से दिखाई देना, भूख न लगना, पेट में दर्द होना, कई बार शरीर में खुजली होना, हाथ पैरों का टूटना/अकड़ना, पेट में अफारा/गैस होना, शरीर से दुर्गन्ध आना, मुह का कड़वा होना, दिन पर दिन दुर्बलता बढ़ती जाना। रोग की अति उग्रावस्था सारे शरीर को हल्दी के समान पीली कर देती  है। इसमें जिगर, तिल्ली, पित्ताशय, आँते, आमाशय, स्वभाविक रूप से प्रभावित होते है। 

नोट: यदि आपको पहले पीलिया हो चुका है, तो उचित परीक्षण से पहले अपने रक्त का दान ना करें।

पीलिया के प्रकार
पीलिया के तीन मुख्य प्रकार हैं - 
  1. हेपेटोसेल्यूलर पीलिया - लिवर की बीमारी या चोट के कारण होता है। 
  2. हेमोलिटिक पीलिया - यह हेमोलिसिस (लाल रक्त कोशिकाओं का त्वरित विघटन) के कारण होता है, जिससे बिलीरुबिन ज़्यादा बनता है।
  3. ऑब्सट्रक्टिव पीलिया - पित्त नलिका में रुकावट के कारण होता है ( लिवर से पित्त को पित्ताशय और छोटी आंत तक ले जाने वाली ट्यूबों की एक प्रणाली), जो बिलीरूबिन को जिगर छोड़ने से रोकता है। 
पीलिया का औषधियों से उपचार
Piliya ka gharelu upchar

फिटकरी : फूली हुई फिटकरी चार रत्ती(1 रत्ती=0.12ग्राम) मात्रा मिश्री में मिलाकर दिन में तीन बार पानी के साथ सेवन करें।
  • 200 ग्राम दही में चुटकी भर फिटकरी को घोलकर पीने से पीलिया रोग में आराम मिल जाता है। इस प्रयोग के समय दिनभर केवल दही ही सेवन करें। इससे पीलिया रोग शीघ्र ही ठीक हो जाता है। इसके सेवन से अगर किसी को उलटी हो जाये तो उसे घबराना नहीं चाहिए और छोटे बच्चों को यह कम मात्रा में देना चाहिए।
  • सफेद फिटकरी को भूनकर पीस लें। पीलिया रोग होने पर पहले दिन फिटकरी के आधा ग्राम चूर्ण को दही में मिलाकर खाएं, दूसरे दिन इस चूर्ण की मात्रा बढ़ाकर एक ग्राम और तीसरे दिन लगभग 2 ग्राम इसी प्रकार बढ़ाते हुए सातवें दिन साढ़े 4 ग्राम चूर्ण को दही में डालकर 7 दिनों तक लगातार खाने से पीलिया रोग समाप्त हो जाता है।

सज्जीखार : 10 ग्राम सज्जीखार और 10 ग्राम संचर नमक को नीबू के रस में घोंटकर तीन दिन पीने से पीलिया रोग मिट जाता है।
  • सज्जीखार, सोडा बाई कार्ब मिलाकर मटर के दाने के बराबर गोलियाँ बना लें और इसका सेवन लगभग डेढ़(1 ½) मटर के दाने के बराबर दिन में तीन बार ठंडे पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है।

ज्वाखार : ज्वाखार 1-1 मटर के दाने की मात्रा में और अपामार्ग की जड़ का चूर्ण आधे मटर के बराबर मिलाकर दिन में तीन बार लेने से भी इस रोग में लाभ मिलता है।
  • कल्मी सोरा और ज्वाखार मिलाकर पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से पेशाब साफ़ आने लगता है।

नीम : 10 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस में 10 मिलीलीटर अड़ूसा के पत्तों के रस व 10 ग्राम शहद को मिलाकर सुबह के समय पीलिया रोग में लेने से आराम पहुंचता है।
  • 200 मिलीलीटर नीम के पत्ते का रस में थोड़ी शक्कर (चीनी) को मिलाकर गर्म करें। इसे 3 दिन तक दिन में एक बार खाने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • नीम के 5-6 कोमल पत्तों को पीसकर, शहद में मिलाकर सेवन करने से मूत्रविकार (पेशाब के रोग) और पेट की बीमारियों में लाभ होता है।
  • 10 मिलीलीटर नीम के पत्तों के रस में 10 ग्राम शहद को मिलाकर 5 से 6 दिन तक पीने से आराम मिलता है।
  • कड़वे नीम के पत्तों को पानी में पीसकर 250 मिलीलीटर रस को निकालकर फिर उसमें मिश्री को मिलाकर गर्म करें। इसे ठंड़ा होने पर पीने से पीलिया रोग दूर होता है।

गिलोय : गिलोय, अड़ूसा, नीम की छाल, त्रिफला, चिरायता, कुटकी को बराबर मात्रा में लेकर जौकुट करके एक कप पानी में पकाकर काढ़ा बनाएं। फिर इसे छानकर थोड़ा-सा शहद मिलाकर पी जाएं। 20 दिन तक इसका सेवन पीलिया के रोगी को कराने से आराम मिलता है।
  • गिलोय का रस एक चम्मच की मात्रा में दिन में 2 बार इस्तेमाल करने से पीलिया रोग में आराम मिलता है।
  • लगभग 10 मिलीलीटर गिलोय के रस को शहद के साथ रोजाना सुबह और शाम सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

शिलाजीत : शुद्ध शिलाजीत में केसर और मिश्री को मिलाकर बकरी के दूध के साथ सेवन करने से कफज पाण्डु (पीलिया) रोग दूर होता है।

हल्दी : 40 ग्राम दही मे 10 ग्राम हल्दी डालकर सुबह-शाम खाने से पीलिया रोग मे लाभ होता जिगर के रोगों में भी यह प्रयोग लाभदायक है।
  • 100 मिलीलीटर छाछ या मट्ठे मे 5 ग्राम हल्दी डालकर रोजाना सुबह-शाम खाने से 1 हफ्ते में ही पीलिया रोग में लाभ नजर आता है।
दारूहल्दी : दारूहल्दी के फेट या घोल में शहद को मिलाकर पीने से पीलिया रोग शान्त हो जाता है।

आंवाहल्दी : 7 ग्राम आंवाहल्दी का चूर्ण और 5 ग्राम सफेद चंदन का चूरा शहद में मिलाकर सुबह और शाम 7 दिनों तक खाने से पीलिया रोग मिट जाता है।

गन्ना : गन्ने के रस को पीलिया रोग की प्रमुख औषधि माना जाता है। जब गन्ने का मौसम न हो तो चीनी के शर्बत में नींबू डालकर पिया जा सकता है।
  • एक गिलास गन्ने के रस में 2-4 चम्मच ताजे आंवले का रस 2-3 बार रोजाना पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
  • गन्ने के टुकड़े करके रात के समय घर की छत पर ओस में रख देते हैं। सुबह मंजन करने के बाद उन्हे चूसकर रस का सेवन करें। इससे 4 दिन में ही पीलिया के रोग में बहुत अधिक लाभ होता है।

अड़ूसा : अड़ूसे के रस में कलमीशोरा डालकर पीने से मूत्र-वृद्धि होकर पीलिया रोग में लाभ होता है।

त्रिफला (हरड, बहेड़ा, आमला): आधा चम्मच त्रिफला का चूर्ण, आधा चम्मच गिलोय का रस और आधा चम्मच नीम के रस को एकसाथ मिलाकर शहद के साथ 15 दिन तक खुराक के रूप में चाटने से पीलिया में आराम मिलता है।
त्रिफला
  • त्रिफला, गिलोय, वासा, कुटकी, चिरायता और नीम की छाल को एक साथ मिलाकर पीस लें। इस मिश्रण की 20 ग्राम मात्रा को लगभग 160 मिलीलीटर पानी में पका लें। जब पानी चौथाई बच जायें तो इस काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम के समय सेवन करने से पीलिया रोग नष्ट होता है।
  • 10 ग्राम त्रिफला रात में भिगो दें और उसे सुबह उसके पानी को छानकर पी लें। 

तम्बाकू : तम्बाकू का धूम्रपान करने से पीलिया रोग में शीघ्र लाभ होता है।

हरड़ : हरड़ की छाल, बहेड़े की छाल, आंवला, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, नागरमोथा, वायविडंग, चित्रक को थोड़ी-थोड़ी सी मात्रा में लेकर पीस लें। इसकी 4 खुराक तैयार करें। दिन भर में चारों खुराक शहद के साथ सेवन करें। इसी अनुपात में 15 दिनों की दवा तैयार कर लें। यह प्रसिद्ध योग है।
  • हरड़ को गाय के मूत्र में पकाकर खाने से पीलिया रोग और सूजन मिट जाती है।
  • 100 ग्राम बड़ी हरड़ के छिलके और 100 ग्राम मिश्री को मिलाकर चूर्ण बनाकर 6-6 ग्राम की खुराक के रूप में सुबह-शाम ताजे पानी के साथ खाने से पीलिया मिट जाता है।

कालीमिर्च : 7 सप्ताह तक लगातार कालीमिर्च का चूर्ण छाछ में मिलाकर पीने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

सत्यानाशी : सत्यानाशी की जड़ की छाल का चूर्ण लगभग एक ग्राम तक लेने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

रीठा : 15 ग्राम रीठे का छिलका और 10 ग्राम गावजवां को रात में 250 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। सुबह उठकर ऊपर का पानी पी जाएं। 7 दिन तक यह पानी पीने से भयंकर पीलिया रोग मिट जाता है।
  • रीठे के छिलके को पीसकर रात को पानी में भिगोयें। सुबह ये पानी नाक में 3 बार दो-दो बूंद टपकाने से पीलिया के रोग में लाभ होता है।

नींबू : प्रतिदिन आंखों में 2-3 बूंद नीबू का रस डालने से पीलिया रोग दूर हो जाता है।
  • 14 से 28 मिलीलीटर नींबू के फलों का रस सुबह और शाम रोगी को देने से पीलिया का रोग ठीक हो जाता है।
  • पीलिया रोग में कागजी नींबू का रस एक गिलास पानी में नित्य दो-तीन बार सेवन करना चाहिए।

मदार : मदार के 25 पत्ते और उसी मात्रा में मिश्री मिलाकर घोंट लें, फिर चने के बराबर गोलियां बना लें। 2-2 गोली दिन में 3 बार खाने से पीलिया में लाभ होगा। ध्यान रहें कि इस दौरान मिर्च और खटाई न खाएं।
  • 1 ग्राम मदार की जड़ की छाल और 12 कालीमिर्च को एकसाथ पीसकर ठंड़ाई की तरह दिन में 2 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।

मेंहदी : 10 ग्राम मेंहदी के पत्तों को 200 मिलीलीटर पानी में रात को भिगों दें। सुबह इस पानी को छानकर रोगी को पिला दें। इससे कुछ दिन में ही पीलिया रोग जड़ से मिट जाता है।
  • पीलिया रोग में 50 ग्राम मेंहदी को कुचलकर आधा गिलास पानी में रात को भिगो दें। सुबह इस पानी को 8-10 दिनों तक लगातार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
तोरई : कड़वी तोरई के रस की 2-3 बूंदों को नाक में डालने से नाक द्वारा पीले रंग का पानी झड़ने लगेगा और एक ही दिन में पीलिया नष्ट हो जाएगा।

पुनर्नवा : पुनर्नवा की जड़ को साफ करके छोटे-छोटे टुकड़े काट लें। उन 21 टुकड़ों की माला बनाकर रोगी के गलें में पहना दें। पीलिया ठीक होने के बाद उस माला को किसी पेड़ पर लटका दें।
  • एक तिहाई कप पुनर्नवा के रस या मकोये के रस में शहद मिलाकर दिन में 3 बार पीने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

अदरक : अदरक, त्रिफला और गुड़ को एकसाथ मिलाकर सेवन करने से पीलिया रोग दूर होता है।

द्रोणपुष्पी : द्रोणपुष्पी के पत्तों का रस का अंजन यानी काजल के रूप में लगाने से कामला (पीलिया) शान्त हो जाता है।
  • द्रोणपुष्पी के पत्तों का 2-2 बूंद रस आंखों में हर रोज सुबह-शाम कुछ समय तक डालते रहने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

पित्तपापड़े : पित्तपापड़े के फांट या घोल को पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।

मकोय : मकोय के काढ़े में हल्दी के चूर्ण को डालकर पीने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • मकोय के 40-60 मिलीलीटर काढ़े में हल्दी का 2 से 5 ग्राम चूर्ण डालकर पीने से पीलिया रोग मे लाभ मिलता है।
  • मकोय के 4 चम्मच रस को हल्का गुनगुना करके 7 दिनों तक पीने से पीलिया रोग दूर होता है।

कपास : 8 ग्राम कपास की मिंगी को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इसे घोटकर और छानकर इसमें थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर पीने से पीलिया दूर हो जाता है।

आलू : आलू या उसके पत्तों का काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से पीलिया दूर हो जाता है।

बकरी का दूध : बकरी के दूध के साथ समुद्रफेन को घिसकर पीने से पीलिया में लाभ होता है।

गाय का दूध : 250 मिलीलीटर गाय के दूध में 2 ग्राम सोंठ मिलाकर सुबह-शाम पीने से पीलिया नष्ट हो जाता है। इसके सेवन के दौरान भोजन में केवल दूध-रोटी खायें।
  • क्रीम निकाला हुआ दूध पीना पीलिया रोग में लाभप्रद होता है।

पोदीना : पोदीना (Mint) के अधिक सेवन से पीलिया रोग में लाभ होता है। 
  • पोदीने की चटनी रोजाना रोटी के साथ खाने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • पोदीने के रस को शहद के साथ 15 दिनों तक सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

बबूल : बबूल के फूलों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना खाने से पीलिया रोग मिट जाता है।

भांगरा : भांगरे के रस में कालीमिर्च मिलाकर दही के साथ खाने से पीलिया रोग मिट जाता है।

बेल : बेल के पत्तों के रस में कालीमिर्च का चूर्ण डालकर पीने से पीलिया रोग शान्त हो जाता है।
  • बेल के कोमल पत्तों के 10 से 30 मिलीलीटर रस में आधा ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।

जामुन : जामुन के रस में जितना सम्भव हो, उतना सेंधानमक डालकर एक मजबूत कार्क की शीशी में भरकर 40 दिन तक रखा रहने दें। इसके बाद आधा चम्मच की मात्रा में रोगी को सेवन कराने से पीलिया में लाभ होगा।

निशोत : 10-10 ग्राम निशोत, सौंठ, कालीमिर्च, पीपल, वायविडंग, दारूहल्दी, चित्रक, कूट, चव्य, त्रिफला, इन्द्रजौ, कुटकी, पीपलामूल, नागरमोथा, काकडासिंगी, अजवाइन, कायफल, पुनर्नवा की जड़ को कूटकर और छानकर 150 ग्राम खांड़ में मिलाकर डेढ किलो पानी में पकाएं। इस पानी के गाढा होने पर या शहद मिलाकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। यह एक गोली सुबह खाली पेट और 1 गोली शाम को पानी से 15 दिन तक लें। यह गोली खांसी, दमा, टी.बी. अफारा, बवासीर, संग्रहणी, खून जाना, पेट के कीड़ो और पीलिया में लाभदायक है।

मूली : 100 मिलीलीटर मूली के पत्तों के रस में 20 ग्राम चीनी को मिलाकर खाली पेट 15 से 20 दिन पीने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • 25 मिलीलीटर मूली के रस में लगभग आधा ग्राम की मात्रा में पिसा नौसादर को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया के रोग में लाभ होता है।
  • 1 चम्मच कच्ची मूली के रस में एक चुटकी जवाखार मिलाकर सेवन करें। कुछ दिनों तक सुबह, दोपहर और शाम को लगातार यह रस पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
  • 2 चम्मच मूली के पत्तों के रस में थोड़ी-सी मिश्री को मिलाकर रोजाना 8-10 दिन तक सेवन करने से पीलिया के रोग में आराम मिलता है।
  • कच्ची मूली रोजाना सुबह उठते ही खाते रहने से कुछ दिनों में पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
  • 125 मिलीलीटर मूली के पत्तों के रस में 30 ग्राम चीनी मिलाकर और छानकर सुबह के समय पीने से हर प्रकार के पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • मूली की सब्जी का सेवन करने से सभी तरह के पीलिया रोग मिट जाते हैं।
  • मूली में विटामिन `सी´, `लौह´, `कैल्शियम´, `सोडियम´, `मैग्नेशियम´ और क्लोरीन आदि कई खनिज लवण होते हैं, जो जिगर की क्रिया को ठीक करते हैं इसलिए पीलिया रोग में मूली का रस 100 से 150 मिलीलीटर की मात्रा में गुड़ के साथ दिन में 3 से 4 बार पीने से लाभ होता है।
  • 10 से 15 मिलीलीटर मूली के रस को 1 उबाल आने तक पकाएं। बाद में इसे उतारकर इसमें 25 ग्राम खांड या मिश्री मिलाकर पिलाएं इसके साथ ही मूली और मूली का साग खाते रहने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
  • सिरके में बने मूली के अचार का सेवन करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
  • मूली के ताजे पत्तों को पानी के साथ पीसकर उबाल लें। उबालने पर इसमें दूध की तरह झाग ऊपर आ जाता है। इसको छानकर दिन में 3 बार पीने से पीलिया रोग मिट जाता हैं।
  • मूली के पत्तों के साथ उसका रस निकाल लें। दिन में 3 बार इस रस को 20-20 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • 70 मिलीलीटर मूली के रस में 40 ग्राम शक्कर (चीनी) मिलाकर पीने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
  • 60 मिलीलीटर मूली के पत्ते का रस व 15 ग्राम खाड़ को एकसाथ मिलाकर पीने से पीलिया रोग कुछ ही समय में समाप्त हो जाता है।
  • मूली के पत्तों के 100 मिलीलीटर रस में शर्करा मिलाकर प्रात:काल पीने से पीलिया रोग में लाभ होता है। सुबह मूली खाने या उसका रस पीने से भी पीलिया रोग नष्ट होता है। बिच्छू के डंक मारने पर मूली का रस लगाने और मूली का रस पिलाने से विष का प्रभाव कम होता है तथा जलन और पीड़ा भी नष्ट होती है।
  • गन्ने के रस के साथ मूली के रस को मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ होता है। मूली के पत्तों की बिना चिकनाई वाली भुजिया खानी चाहिए।
  • 100 मिलीलीटर मूली के रस में 20 ग्राम शक्कर मिलाकर पीने से पीलिया रोग मिट जाता है। रोगी को खाने में मूली, संतरा, पपीता, खरबूज, अंगूर और गन्ना आदि दे सकते हैं।

बंदाल : बंदाल को रात में पानी में भिगो दें। सुबह इस पानी को छान करके नाक में 2-2 बूंद टपकाने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।

सुहागा : भूना सुहागा, भुनी फिटकरी, कलमीशोरा और नौसादर को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें। इसे 1-1 ग्राम की मात्रा में पानी से भोजन के बाद दोनों समय लेने से पीलिया रोग में आराम मिलता है।

कलमीशोरा : कलमीशोरा और जवाखार को एक-एक चम्मच की मात्रा में पानी में मिलाकर दिन में 3 बार लेने से पीलिया के रोग में लाभ मिलता है।

जौ : जौ का सत्तू खाकर ऊपर से एक गिलास गन्ने के रस को रोजाना 4-5 दिनों तक पीने से पीलिया कम हो जाता है।

बथुआ : 100 ग्राम बथुए के बीजों को कूट-पीसकर और छानकर दिन में 1 बार 15-16 दिन तक आधा चम्मच चूर्ण के रूप में पानी के साथ सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  • कुटकी और चिरैंता को समान मात्रा में कूटकर 10 ग्राम की मात्रा को पानी में भिगो दें और फिर छानकर उसमे मिश्री मिलाकर सेवन करें।
भोजन तथा परहेज (Piliya me Parhej)
आहार
जहाँ तक हो सके पीलिया के मरीज को हल्का भोजन और कम मात्रा में करना चाहिए ताकि वह आसानी से पच सके अन्न में गेहूँ, चावल, जौ, मूंग, मसूर, अरहर का सेवन कर सकते है। सब्जियों में साग(पालक), कच्ची मूली, तोरई, पेठा, और कच्चे केले का सेवन लाभकारी होता है। इसके अतिरिक्त नारियल का पानी, जौ का पानी, गन्ने का रस, नमक-जीरा डाला हुआ पतला छाछ आदि का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए। मिश्री और भुना हुआ चना भी इस रोग में बहुत लाभप्रद है।
  • पूर्ण विश्राम, फलाहार, रसहार, तरल पदार्थों जैसे जूस का सेवन, चोकर समेट आटे की रोटी, पुराने चावल का भात, नींबू-पानी, ताजे एवं पके फल, अंजीर, किशमिश, गन्ने का रस, जौ-चना के सत्तू, छाछ, मसूर, मूंग की दाल, केला, परवल, बैगन की सब्जी, गद्पुरैना की सब्जी, क्रीम निकला दूध, छेने का पानी, मूली, खीरा आदि खाना चाहिए।
  • पीलिया के रोगी को जौ, गेहूं तथा चने की रोटी, खिचड़ी, पुराने चावल, हरी पत्तियों के शाक, मूंग की दाल, नमक मिलाकर मट्ठा या छाछ आदि देना चाहिए।
अपथ्य (परहेज)
राई आदि अत्यन्त तीक्ष्ण पदार्थों का सेवन आदि कारणों से वात, पत्ति और कफ ये तीनों दोष कुपित होकर पीलिया रोग को जन्म देते हैं।
  • लाल मिर्च, तेल, घी के पदार्थ, गरम मसाले की चीजें, उड़द और मैदे के भोज्य पदार्थ तथा जलन उत्त्पन्न करने वाली चीजें बिलकुल नहीं खानी चाहिए।
  • धुम्रपान, शराब, मछली, मांस, राई, हिंग, तिल, चाय, गुड़ बिलकुल नहीं खानी चाहिए।
  • अधिक स्त्री-प्रसंग (संभोग) नहीं करना चाहिए।
  • खटाई, गर्म तथा चटपटे और पित्त को बढ़ाने वाले पदार्थ अधिक नहीं खाने चाहिए। 
  • दिन में अधिक नहीं सोना चाहिए।
  • खून की कमी तथा वायरस के संक्रमण के कारण।
  • खट्टे पदार्थों का सेवन, और गरम भोज्य पदार्थ नहीं खाना चाहिए।
  • पेट भर कर खाना, ठंड़े पानी से स्नान, लालमिर्च, मसाले, तली हुई चीजें, मांस आदि से दूर रहना चाहिए।
  • रोगी को भोजन बिना हल्दी का देना चाहिए।
  • रोगी को पूर्ण विश्राम करने का निर्देश दें। इसके साथ ही रोगी को मानसिक कष्ट पहुंचाने वाली बातें नहीं करनी चाहिए।
  • घी, तेल, मछली, मांस, मिर्च, मसाला एवं चर्बीयुक्त चीजों से सदा सावधान रहें।
  • मैदे की बनी चीजें, खटाई, उड़द एवं खेसाड़ी की दाल, सेम, सरसों युक्त गरिष्ट भोजन न खायें।
  • यदि पीलिया रोग में नमक न खायें तो अच्छा रहता है।

निवास स्थान
पीलिया के रोगी को प्रकाशयुक्त स्वच्छ हवादार मकान में रहना चाहिए। उसका निवास स्थान शीतल होना चाहिए जहाँ धुप न आये। उसे सुबह शाम हरी घास पर टहलना चाहिए और बागीचे की खुली हवा में बैठना लाभदायी होता है, बिस्तर भी साफ़ सुथरा रखना चाहिए।








Saturday 13 January 2018

पायरिया (Pyorrhea) के प्रमुख कारण और उपाय

पायरिया रोग के कारण और उपाय


आज सभी जानते है, की जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे जीवन में दांत एक विशेष महत्व रखते है। दांतो के महत्व के समबन्ध में इतना लिखना पर्याप्त होगा की हमारा आहार दांतो से चबाने के कारन सुपाच्य बन जाता है। जिससे हाजमा रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थी, मज्जा, और शुक आदि धातुओं को क्रमशः बनाने में समर्थ होता है। इसके विपरीत यदि आहार का पाचन न होगा तो शरीर दुर्बल हो जायेगा। इतना ही नही दांतो की यह भी विशेषता है कि दन्तविहीन युवा व्यक्ति भी वृध्द दीखोगे और जो पूर्ण स्वस्थ दांतोवाला होगा वह वृध्द भी कम आयु वाला प्रतीत होगा।
             पायरिया दांतों का रोग है, जो मसूढ़ों को भी प्रभावित करता है। इस राग से ग्रस्त होने पर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इससे बचने के लिए इसके कारण और लक्षणों को जानना भी बेहद जरूरी है।

यहाँ हम दातो के उन अनेक रोगों में से एक मुख्य रोग - पायरिया है, जिसे आयुर्वेद में पूतिदन्त भी कहते है। 

पायरिया रोग कारण

यह रोग दांतो की रक्षा के उपाय (दातून, मंजन) न करने के कारण होता है। ठण्डे एवं गरम पदार्थो का विषम संयोग भी दांतो की जड़ो को व मांस को दूषित करके रोग पैदा कर देता है। कुल्ला भली-भांति न करने से आहार के कण दांतो के बीच में रूककर सड़न पैदा कर देता है, और मसूड़ों के मांस को गलाने लगता है।
लि‍वर की खराबी के कारण रक्त में अम्लता बढ़ जाती है। दूषित अम्लीय रक्त के कारण दांत पायरिया से प्रभावित हो जाते हैं।
     मांसाहार तथा अन्य गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का सेवन, पान, गुटखा, तम्बाकू आदि पदार्थों का अत्यधिक मात्रा में सेवन, नाक के बजाए मुंह श्वास लेने का अभ्यास, भोजन को ठीक से चबाकर न खाना, अजीर्ण, कब्ज आदि पायरिया होने के प्रमुख कारण हैं। यही पायरिया रोग के मुख्य कारण है।

पायरिया रोग लक्षण

दांतो में दर्द, तेजी से उठना, मसूड़ो का फूल जाना, उन्हें दबाने से मवाद या खून निकलना, ठण्डी व गरम वस्तु खाने में असमर्थता हो, मुंह में दुर्गन्ध आना एवं मन की अप्रसन्नता होना, भोजन का न पचना और खून ठीक प्रकार से न बनना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण हैं।
                       पायरिया से ग्रस्त होने पर दांत ढीले होकर हिलने लग जाते हैं। मसूढ़ों से मवाद और रक्त निकलने लगता है। दांतों पर कड़ी पपड़ियां जम जाती हैं। मुंह से दुर्गंध आने लगती है। उचित चिकित्सा न करने पर दांत कमजोर होकर गिर सकते हैं।

पायरिया रोग से बचाव 

इस भयंकर बिमारी से बचने के लिए प्रतिदिन सुबह दाँतों को साफ़ करना अति आवश्यक है।
  • भोजन करने के बाद मध्यमा अंगुली से अच्छे मंजन द्वारा दांतों को साफ करें। 
  • दातुन करने के लिए नीम, बबूल, आम, अर्जुन, करंज, खैर, श्रेष्ठ रहती है। ज्यादातर नीम या बबूल की दातुन खूब चबाकर उससे ब्रश बनाकर दांत साफ करने चाहिए। लेकिन लिसोढ़, रीठा, बहेड़ा, संभालू, पीपल और इमली आदि की दातुन का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए।
  • मंजन के रूप में किसी भी प्रकार की औषधियों के चूर्ण उपयोग में लाये जा सकते हैं। आधुनिक प्रणाली में पेस्ट का अधिक प्रयोग होता है। यह भी यदि अच्छे ब्रश से करें तो लाभकारी होगा
  • सरसों के तेल में नमक मिलाकर अंगुली से दांतों को इस प्रकार मलें कि मसूढ़ों की अच्‍छी तरह मालिश हो जाए।
  • शौच या लघुशंका के समय दांतों को अच्छी तरह से भींचकर बैठें। ऐसा करने से दांत सदैव स्वस्थ रहते हैं।
  • रात को सोते समय 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण जल के साथ तथा दिन में 2 बार अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन करें।
  • जामुन की छाल के काढ़े से दिन में कई बार कुल्ले करें।
  • नीम का तेल मसूढ़ों पर अंगुली से लगाकर कुछ मिनट रहने दें, फिर पानी से दांत साफ कर लें।
  • फिटकरी को भूनकर पीस लें। इसका मंजन पायरिया में लाभप्रद है। फिटकरी के पानी का कुल्ला करें।
  • भोजन के बाद दांतों में फंसे रह गए अन्न के कण को नीम आदि की दंतखोदनी द्वारा निकाल लें।
  • सुबह-शाम पानी में नींबू का रस निचोड़कर पिएं।
  • पालक, गाजर और गेहूं के जवारे का रस नित्य प्रति पिएं। यह अपने आप में स्वत: औ‍षधि का कार्य करता है।
  • जटामांसी 10 ग्राम, नीला थोथा 10 ग्राम, कालीमिर्च 5 ग्राम, लौंग 2 ग्राम, अजवाइन 2 ग्राम, अदरक सूखी 5 ग्राम, कपूर 1 ग्राम, सेंधा नमक 5 ग्राम तथा गेरू 10 ग्राम- इन वस्तुओं का समान मात्रा में महीन चूर्ण बनाकर रख लें। इससे दिन में 3 बार अंगुली से रगड़-रगड़कर देर तक अच्छी तरह से मंजन करें। यह मंजन पायरिया की अनुभूत औषधि है।
  • अजीर्ण और कब्ज न हो- यह ध्यान रखते हुए हल्का सुपाच्य भोजन लें। रात को सोते समय हर्रे खाकर गरम दूध पीयें। सुबह 2 ग्राम सूखे आंवले का चूर्ण पानी के साथ लें। मिर्च-मसाला, चाय-कॉफी का प्रयोग न करें।
  • बादाम या अखरोट के छिलके जलाकर 80 ग्राम, सोना गेरू 60 ग्राम, समुद्री झाग 60 ग्राम, फिटकरी फूली हुई 40 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम, नीला थोथा फुला हुआ 10 ग्राम, कपूर 10 ग्राम आदि का बारीक चूर्ण बनाकर उसमे आवश्यकतानुसार सेंधा नमक मिला लें और इसका प्रयोग मंजन के रूप में करें।

Friday 5 January 2018

दालचीनी के औषधीय प्रयोग | Benefits Of Cinnamon (Dalchini)

दालचीनी (Cinnamon) के कुछ प्रयोग
परिचय
दालचीनी का सुगंधित तेल
गरम मसालों और औषधि के रूप में प्रयुक्त दालचीनी सिन्नेमोमम ज़ाइलैनिकम ब्राइन. (Cinnamomum zeylanicum Breyn.) नामक पेड़ की छाल का नाम है जिसे अंग्रेजी में 'कैशिया बार्क' का वृक्ष कहा जाता है,। यह सदाबहार पेड़ लौरेसिई वंश की अन्य प्रमुख प्रजातियों के पेड़ों के समान श्रीलंका, भारत, पूर्वी द्वीप तथा चीन इत्यादि देशों में साधारणतया सुलभ है। ये पेड़ भारत में पूर्वी हिमालय के इलाकों, असम, सिक्किम तथा खासी और जैंतिया की पहाड़ियों में 900 से लेकर 2,500 मीटर तक की ऊँचाई तक पाए जाते हैं।

गरम मसालों में दालचीनी का उपयोग भारत में हजारों वर्षों से होता आ रहा है। इसका वर्णन संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में भी प्राप्त होता है। इतिहास के अध्ययन से भी ज्ञात होता है कि भारत से इसका निर्यात अरब, मिस्र, ग्रीस, इटली और यूरोप के सभी देशों में होता था। बाइबिल में भी इसका उल्लेख है।

श्रीलंका द्वीप के दक्षिण-पश्चिम भाग में दालचीनी के पेड़ की खेती लगभग बीस किलोमीटर की दूरी तक नेगुंबो, कोलंबो और मातुरा के बीच, 450 मीटर की ऊँचाई तक की भूमि पर की जाती है। वृक्षों का प्रसारण बीजों और कलमों से किया जाता है। उपजाऊ भूमि में लगे पेड़ों पर से दूरे वर्ष के अंत में, वर्षा ऋतु में, प्रथम बार छाल उतारी जा सकती है। छाल उतार लेने पर पेड़ मर जाता है, परंतु उसके मुख्य तने में चार से सात तक नई शाखाएँ निकल आती हैं, जिनपर से पुन: दो वर्ष उपरांत छाल उतारी जाती है। छाल को 24 घंटों तक सुखाकर और साफ करके, हाथों से लपेटकर उनको एक मीटर लंबी, पतली नलियों के आकार में बाँधकर बेचा जाता है। दालचीनी का सुगंधित तेल भी आर्थिक महत्व का है।

दालचीनी (Dalchini) के गुण
दालचीनी (Dalchini) मन को प्रसन्न करती है। सभी प्रकार के दोषों को दूर करती है। यह पेशाब और मैज यानी की मासिक-धर्म को जारी करती है। धातु को पुष्ट करती है। मानसिक उन्माद यानी कि पागलपन को दूर करती है। इसका तेल सर्दी की बीमारियों और सूजनों तथा दर्दो को शान्त करता है। सिरदर्द के लिए यह बहुत ही गुणकारी औषधि होती है।

दालचीनी (Dalchini) उष्ण, पाचक, स्फूर्तिदायक, रक्तशोधक, वीर्यवर्धक व मूत्रल है | यह वायु व कफ का शमन कर उनसे उत्पन्न होनेवाले अनेक रोगों को दूर करती है |

यह श्वेत रक्तकणों की वृद्धि कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है | बवासीर, कृमि, खुजली, राजयक्ष्मा ( टी,बी,), इन्फ्लूएंजा ( एक प्रकार का शीतप्रधान संक्रामक ज्वर), मूत्राशय के रोग, टायफायड, ह्रदयरोग, कैन्सर, पेट के रोग आदि में यह लाभकारी है | संक्रामक बीमारियों की यह विशेष औषधि है |
दालचीनी की मात्रा
दालचीनी गर्म होती है। अत: इसे थोड़ी सी मात्रा में लेते हुए धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। परन्तु यदि किसी प्रकार का दुष्प्रभाव या हानि हो तो सेवन को कुछ दिन में ही बंद कर देते हैं और दुबारा थोड़ी सी मात्रा में लेना शुरू करें।

दालचीनी पाउडर की उपयोग की मात्रा 1 से 5 ग्राम होती है। पाउडर चम्मच के किनारे से नीचे तक ही भरा जाना चाहिए। बच्चों को भी इसी प्रकार अल्प मात्रा में देते हैं। दालचीनी का तेल 1 से 4 बूंद तक काम में लेते हैं। दालचीनी का तेल तीक्ष्ण और उग्र होता है। इसलिए इसे आंखों के पास न लगाएं।


दालचीनी (Cinnamon) के लाभकारी उपयोग


हकलाना तुतलाना:– दालचीनी को रोजाना सुबह-शाम चबाने से हकलापन दूर होता है।

वीर्यवर्द्धक:- दालचीनी को बहुत ही बारीक पीस लेते हैं। इसे 4-4 ग्राम सुबह व शाम को सोते समय दूध से फांके। इससे दूध पच जाता है और वीर्य की वृद्धि होती है।

पेट में गैस:- दालचीनी पेट की गैस को नष्ट करती है तथा पाचनशक्ति (भोजन पचाने की क्रिया) को बढ़ाती है। 2 चुटकी दालचीनी को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर पानी के साथ लेने से पेट की गैस नष्ट हो जाती है।
* दालचीनी के तेल में 1 चम्मच चीनी (शक्कर) डालकर पीने से पेट की गैस में लाभ होता हैं। ध्यान रहे कि अधिक मात्रा में लेने से हानिकारक होती है।


पित्त की उल्टी:- दालचीनी को पीसकर शहद में मिलाकर रोगी को पिलाने से पित्त की उल्टी बंद हो जाती है।

इनफ्लुएंजा:- 5 ग्राम दालचीनी, 2 लौंग और चौथाई चम्मच सोंठ को लेकर पीसकर 1 लीटर पानी में उबालें। चौथाई पानी के शेष रहने पर छानकर इस पानी के 3 हिस्से करके दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से इनफ्लुएंजा में लाभ मिलता है।

टांसिल:-चुटकी भर दालचीनी को 1 चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना 3 बार चूसने से टांसिल (गांठे) ठीक हो जाती है।
* दालचीनी को पीसकर शहद में मिलाकर उंगली से टांसिल पर लगाने से लाभ होता है।

गले में खरास हो जाना:- दालचीनी को बारीक पीसकर अंगूठे से सुबह के समय काग पर लगाएं और रोगी को लार टपकाने के लिए बोलें। इस प्रयोग से गले की कागवृद्धि दूर हो जाएगी।

कब्ज, अपच, भूख न लगना:- दालचीनी, सोंठ, जीरा और इलायची थोड़ी सी मात्रा में मिलाकर खाते रहने से कब्ज और अजीर्ण (भूख न लगना) में लाभ होता है।
* दालचीनी की 2 ग्राम छाल के चूर्ण को दिन में दो बार पानी से लेने से अपच (भोजन का न पचना) का रोग ठीक हो जाता है।
* 2 ग्राम दालचीनी और अजवायन को बराबर मात्रा में लेकर 3 भाग करके भोजन से पहले चबाने से भूख लगने लगती है।

खांसी:दालचीनी को चबाने से सूखी खांसी में आराम मिलता है और यदि गला बैठ गया हो तो आवाज साफ हो जाती है। चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर को 1 कप पानी में उबालकर 3 बार पीते रहने से खांसी ठीक हो जाती है तथा बलगम बनना बंद हो जाता है। 
20 ग्राम दालचीनी, 320 ग्राम मिश्री, 80 ग्राम पीपल, 40 ग्राम छोटी इलायची, 160 ग्राम वंशलोचन को बारीक पीसकर मिलाकर मैदा की छलनी से छान लेते हैं। इसके बाद एक चम्मच शहद को आधा चम्मच मिश्रण में मिलाकर सुबह-शाम चाटे जो लोग शहद नहीं लेते हैं वे गर्म पानी से फंकी करें। यह मिश्रण घर में रखते हैं। जब कभी किसी को खांसी हो इसे देने से लाभ होता है।
* 50 ग्राम दालचीनी पाउडर, 25 ग्राम पिसी मुलहठी, 50 ग्राम मुनक्का, 15 ग्राम बादाम की गिरी, 50 ग्राम शक्कर को लेकर बारीक पीसकर पानी मिलाकर मटर के दाने के आकार की गोलियां बना लेते हैं। जब भी खांसी हो 1 गोली चूसे अथवा हर 3 घंटे बाद एक गोली चूसे। इससे खांसी नहीं चलेगी और मुंह का स्वाद हल्का होगा।
कायफल के चूर्ण को दालचीनी के साथ खाने से पुरानी खांसी और बच्चों की कालीखांसी दूर हो जाती है।

दमा रोग में:- दालचीनी का छोटा सा टुकड़ा, चौथाई अंजीर या तुलसी के पत्ते, नौसादर (खाने वाला) ज्वार के दाने के बराबर, 1 बड़ी इलायची, काली दाख 4 (काले मुनक्के) थोड़ी सी मिश्री को मिलाकर बारीक पीसकर सेवन करने से दमे के रोग में लाभ होता है।
विधि:- एक कप पानी में सभी चीजों को लेकर उबाल लेते हैं। जब आधा पानी शेष रह जाए तो छानकर रोजाना सुबह व शाम को पीना चाहिए। पीने के आधा घंटे बाद तक कुछ न खाएं, पानी भी न पियें। इसके सेवन करने से दमे का दौरा समाप्त हो जाता है।

गठिया (जोड़ों का दर्द/सूजन):- 1 भाग शहद, 2 भाग हल्का गर्म पानी और 1 छोटी चम्मच दालचीनी पाउडर को मिला लेते हैं। जिस जोड़ में दर्द कर रहा हो, उस पर धीरे-धीरे इसकी मालिश करें। दर्द कुछ ही मिनटों में मिट जाएगा।
1 गिलास दूध में 1 गिलास पानी मिलाकर इसमें 1 चम्मच पिसी हुई दालचीनी, 4 छोटी इलायची, 1-1 चम्मच सोंठ व हरड़ तथा लहसुन की 3 कली के छोटे-छोटे टुकडे़ डालकर उबालें जब दूध आधा शेष रह जाए तो इसे गर्म ही पीना चाहिए। लहसुन को भी दूध के साथ ही निगल जाना चाहिए। इससे आमवात व गठिया में लाभ मिलता है।

बालरोग:- छोटे बच्चों को दस्त हो तो गर्म दूध में चुटकी भर पिसी हुई दालचीनी मिलाकर पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं।

बालों का झड़ना:- आलिव ऑयल गर्म करके इसमें 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर, लेप बनाकर, सिर में बालों की जड़ों व त्वचा पर स्नान करने से 15 मिनट पहले लगा लें। जिन लोगों के सिर के बाल गिरते हो और जो गंजे हो गये हो उन्हें लाभ होता है।
* बालों पर एक चमकदार और सुरक्षित परत होती है जिसे क्यूटिकल कहते हैं। जब यह परत टूटती है, तो बालों के सिरे भी टूटने लगते हैं। कई बार बालों के अत्यधिक सूखे और कमजोर होने के कारण भी बाल दोमुंहे होने लगते हैं। गीले बालों में कंघी करने से भी बालों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचता है और यह भी बालों के दोमुंहे होने का कारण बनते हैं। इसी तरह तेज-तेज कंघी करने और धूप में ज्यादा देर रहने से भी बाल कमजोर हो जाते हैं।
दोमुंहे बालों का सबसे अच्छा यही उपचार है कि उन्हें काट दें। बालों को नियमित रूप से काट-छांटकर उन्हें दोमुंहा होने से बचाया जा सकता है। बालों की सुरक्षा हेतु दालचीनी का प्रयोग करें। इससे बाल मजबूत और सुरक्षित रहेंगे।

जल वृषण (अण्डकोषों जल भर जाने से सूजन):- आधा चम्मच दालचीनी पाउडर को सुबह-शाम पानी से लेने से अण्डकोष में पानी भर जाने की शिकायत दूर हो जाती है।

मूत्राशय संक्रमण:- 2 चम्मच दालचीनी पाउडर और 1 चम्मच शहद को 1 गिलास हल्के गर्म पानी में घोलकर पीना चाहिए। इससे मूत्राशय के रोग नष्ट हो जाते हैं।

दांत दर्द:-एक चम्मच दालचीनी पाउडर को 5 चम्मच शहद में मिला लेते हैं। इसे दांतों पर रोजाना दिन में 3 बार लगाना चाहिए। इससे दांत दर्द ठीक हो जाता है। जब तक दर्द पूरा ठीक न हो जाए तो इसे लगाना चाहिए।
दालचीनी का तेल दुखते दांत पर लगाने से दांत दर्द ठीक हो जाता है। चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर की फंकी गर्म पानी से दिन में 3 बार लेने से लाभ मिलता है। इसे 1 चम्मच शहद में भी मिलाकर दे सकते हैं।

दांतों में कीड़े लगना:- दालचीनी के तेल में रूई भिगोकर दांत के गड्ढ़े में रखें। इससे दांत के कीड़े व दर्द नष्ट हो जाते हैं।

जुकाम:- 1 ग्राम दालचीनी, 3 ग्राम मुलहठी और 7 छोटी इलायची को अच्छी तरह से पीसकर 400 मिलीलीटर पानी में मिलाकर आग पर पकाकर रख दें। पकने के बाद जब पानी आधा बाकी रह जाये तो इसमें 20 ग्राम मिश्री डालकर पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
एक बड़े चम्मच शहद में चौथाई चम्मच दालचीनी का पाउडर मिलाकर एक बार रोजाना खाने से तेज व पुराना जुकाम, पुरानी खांसी और साइनसेज ठीक हो जाते हैं। इसे दिन में कम से कम 3 बार लेना चाहिए तथा रोग ठीक होने तक लेते रहें। रोग की प्रारम्भ में इसे 2 बार रोजाना लेना चाहिए।
* 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को मिश्री के साथ रोजाना 2-3 बार सेवन करने से जुकाम में आराम आता है। थोड़ी सी बूंदे इस तेल की रूमाल में डालकर सूंघने से भी लाभ होता है।

कंधे में दर्द:- कभी-कभी कंधे में दर्द होता है। दालचीनी का प्रयोग करने से कंधे का दर्द ठीक हो जाता है।
शहद और दालचीनी पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर रोजाना 1 चम्मच सुबह के समय सेवन करने से शरीर में रोगाणुओं और वायरल संक्रमण से लड़ने की शक्ति बढ़ती है, शरीर की प्रतिरोधी शक्ति बढ़ती है। कंधे पर इसी मिश्रण की मालिश करके अन्त में लेप करना चाहिए।

सन्तानहीनता (बांझपन):-वह पुरुष जो बच्चा पैदा करने में असमर्थ होता है, यदि रोजाना सोते समय 2 बड़े चम्मच दालचीनी ले तो वीर्य में वृद्धि होती है और उसकी यह समस्या दूर हो जाती है।
जिस स्त्री के गर्भाधारण ही नहीं होता, वह चुटकी भर दालचीनी पाउडर 1 चम्मच शहद में मिलाकर अपने मसूढ़ों में दिन में कई बार लगायें। थूंके नहीं। इससे यह लार में मिलकर शरीर में चला जाएगा। इससे स्त्रियां कुछ ही दिनों में गर्भवती हो जाती हैं।

गर्भस्राव:- कमजोर गर्भाशय के कारण बार-बार गर्भस्राव होता रहता है। गर्भधारण से कुछ महीने पहले दालचीनी और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच रोजाना सेवन करने से गर्भाशय शक्तिशाली हो जाएगा।

मुंह से बदबू दालचीनी का टुकड़ा चबाकर चूसने से मुंह की बदबू दूर हो जाती है और दांत मजबूत हो जाते हैं।

धूम्रपान:- 1 चम्मच शहद में 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर एक चौड़े मुंह की छोटी शीशी में रख लें। जब भी बीड़ी, सिगरेट, जर्दा खाने की इच्छा हो तो इसमें अंगुली डुबोकर चूसें। इससे धूम्रपान छूट जाएगा। 
"मन में निश्चय करके भी धूम्रपान को छोड़ा जा सकता है।"

कोलेस्ट्राल:- 2 बड़े चम्मच शहद, 3 चम्मच दालचीनी पाउडर और 400 मिलीलीटर चाय का उबला पानी घोलकर पियें। इसे पीने के 2 घंटे के बाद ही खून में 10 प्रतिशत कोलेस्ट्राल कम हो जाएगा। यदि 3 दिन तक लगातार पियें तो कोलेस्ट्राल का कोई भी पुराना रोगी हो वह ठीक हो जाएगा।

हार्टअटैक (हृदयघात):- शहद और दालचीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच नाश्ते में ब्रेड या रोटी में लगाकर रोजाना खाएं। इससे धमनियों का कोलेस्ट्राल कम हो जाता है। जिसको एक बार हार्ट अटैक आ चुका है, उनको दुबारा हार्ट अटैक नहीं आता है।

दीर्घ आयु:- एक चम्मच दालचीनी पाउडर को 3 कप पानी में उबालें। उबलने के बाद हल्का सा गर्म रहने पर इसमें 4 चम्मच शहद मिलाएं। एक दिन में इसे 4 बार पियें। इससे त्वचा कोमल व ताजी रहेगी और बुढ़ापा भी दूर रहेगा।
वरिष्ठ नागरिक जो दालचीनी और शहद का बराबर मात्रा में सेवन करते हैं उनका शरीर अधिक फुर्तीला और लचकदार रहता है।

मोटापा:– 1 कप पानी में आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर उबालते हैं। इसमें 1 चम्मच शहद डालकर रोजाना सुबह नाश्ते से पहले तथा रात को सोने से पहले पियें इससे वजन कम होगा और मोटापा नहीं बढे़गा।

बहरापन:- शहद और दालचीनी पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह और रात को लेने से सुनने की शक्ति दुबारा आ जाती है अर्थात बहरापन दूर होता है।
कान से कम सुनाई देने के रोग (बहरापन) में कान में दालचीनी का तेल डालने से आराम आता है।

चेहरे के दाग:- दूध की मलाई में चुटकी भर दालचीनी मिलाकर चेहरे पर मलने से चेहरे के दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं।
* 3 चम्मच शहद में 1 चम्मच दालचीनी पाउडर और कुछ बूंदे नींबू के रस की डालकर लेप बनाकर चेहरे पर लगाएं। फिर 1 घंटे के बाद धोएं। इससे चेहरे के मुंहासे ठीक हो जाएंगे।
चौथाई चम्मच दालचीनी में नींबू के रस की कुछ बूंदे डालकर पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं। इसे एक घंटे बाद धोते हैं। इससे मुंहासे ठीक हो जाएंगे।

त्वचा संक्रमण:- दाद, रिंगवर्म और समस्त त्वचा संक्रमण रोगों को ठीक करने के लिए बराबर मात्रा में शहद और दालचीनी को मिलाकर रोजाना लगाना चाहिए।

डायबिटीज से होने वाले रोग:- दालचीनी का रोजाना सेवन करने से थकान, आंखों की रोशनी कम होना, दिल, किडनी खराब होना आदि रोगों से बचाव होता है। 
* सेवन विधि:- 1 कप पानी में दालचीनी पाउडर को उबालकर, छानकर रोजाना सुबह पियें। इसे कॉफी, खाद्य-पदार्थों में भी मिलाकर पी सकते हैं। इसे सेवन करने के हर दसवें दिन मधुमेह की जांच करवाकर इसके लाभ को देखें। 
* सावधानी:- दालचीनी बताई गई अल्प मात्रा में लें, इसे अधिक मात्रा में लेने से हानि हो सकती है।

हिचकी:- 3 बूंद दालचीनी के तेल को आधा कप पानी में मिलाकर पीने से हिचकी बंद हो जाती है। दालचीनी चबाकर चूसने से हिचकी आना रुक जाती है।

पेट के कीडे़:- चौथाई चम्मच दालचीनी के चूर्ण को 1 चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना एक बार लेना चाहिए। इससे पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।

बवासीर:-चौथाई चम्मच दालचीनी के चूर्ण को 1 चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना एक बार लेना चाहिए। इससे बवासीर का रोग दूर हो जाता है।
आधा चम्मच दालचीनी पाउडर को 1 कप पानी में उबालकर, खाने के आधा घंटे बाद सुबह-शाम पीने से रक्तस्रावी बवासीर ठीक हो जाती है।

फोड़ा:- दालचीनी को पानी में पीसकर उठते फोड़े पर लेप करने से फोड़ा बैठ जाता है और पकता नहीं है।

त्वचा में सूजन:- दालचीनी को पानी में पीसकर चमड़ी में जहां पर रोग हो वहां पर लेप करने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं तथा सूजन वाले स्थान पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।

टायफाइड (मियादी बुखार):- टायफाइड की चिकित्सा जिस किसी प्रकार की औषधि से हो रही हो, उनके साथ 1 बार रोजाना 3 बूंद दालचीनी का तेल आधा कप पानी में डालकर रोगी को पिलाने से तेजी से लाभ होता है।

स्मरण शक्ति वर्द्धक:- सुबह-शाम आधा चम्मच दालचीनी पाउडर की पानी से फंकी लेते रहने से दिमाग की कमजोरी दूर होती है तथा बुद्धि का विकास होता है।

पेशाब में रुकावट:- दालचीनी लेने से पेशाब अधिक बनता है और पेशाब की रुकावट दूर होती है। इससे पेशाब खुलकर और बिना दर्द के आता है। पेशाब में मवाद आना बंद हो जाता है। इसके लिए रोजाना 3 बार आधा चम्मच दालचीनी पाउडर की पानी से फंकी लें।

जहरीले कीड़े काटना (बिच्छू):- जहां डंक लगा हो या किसी जहरीले कीड़े ने काटा हो उस स्थान पर दालचीनी का तेल लगाने से दर्द, सूजन और जलन दूर हो जाता है।

क्षय (टी.बी):- 2 चम्मच मिश्री पर दालचीनी के तेल की 4 बूंद डालकर रोजाना 3 बार खाने से टी.बी के रोग में लाभ होता है। यदि टी.बी में फेफड़ों से रक्तस्राव (खून बहना) होता है। इसमें आधा चम्मच दालचीनी पाउडर पानी से रोजाना 2 बार फंकी लेने से लाभ मिलता है।

रक्तविकार:- दालचीनी खून को साफ करती है। यह खून की सफेद कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाती है। इसके लिए चौथाई चम्मच दालचीनी को एक चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना लेते हैं।

गर्मी देने लिए:- यदि कोई व्यक्ति बेहोश हो गया हो उसका शरीर ठण्डा पड़ गया हो, कमजोर हो गया हो तो दालचीनी का आधा चम्मच तेल 3 चम्मच तिल के तेल में मिलाकर मालिश करने से शरीर में गर्मी और चेतना आ जाती है।

वीर्य की पुष्टि:- दालचीनी गर्म और खुश्क होती है। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग दालचीनी और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सफेद कत्था पीसकर पानी से दिन में 3 बार लेने से पेट के दस्त और मरोड़ ठीक हो जाते हैं। 
* 1-1 ग्राम पिसी हुई दालचीनी को सुबह-शाम गर्म दूध से 15-20 दिन प्रयोग करने से वीर्य पुष्ट हो जाता है।

अग्निमान्द्य (भूख कम लगना):-दालचीनी का चूर्ण 2 से 4 ग्राम दिन में 2 बार पानी के साथ लेने से अग्निमान्द्य दूर हो जाता है।
* बारीक पिसी हुई 2 से 3 ग्राम देशी चीनी में दालचीनी का शुद्ध तेल 5 से 6 बूंद डालकर सुबह और शाम सोने से पहले रात को 1 सप्ताह तक लेने से अग्निमान्द्य (भोजन का न पचना) में लाभ होता हैं।

अफारा (गैस का बनना):- दालचीनी के तेल की 1 से 3 बूंद को मिश्री के साथ सुबह और शाम रोगी को देने से पेट के अफारे (गैस) में लाभ होता है।
1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को बताशे या चीनी पर डालकर सुबह और शाम सेवन करने से डकार और पेट में गैस बंद हो जाती है।

जीभ और त्वचा की सुन्नता:- जीभ का लकवा, जीभ सुन्न हो जाने पर, दालचीनी का तेल मिश्री में मिलाकर 1 से 3 बूंद रोजाना दिन में 2 से 3 बार सेवन करें तथा दालचीनी का चूर्ण मुंह में रखकर बराबर चूसते रहें।

जीभ की कड़वाहट ठीक करना:- जबान (मुंह) पर कड़वाहट लगने पर दालचीनी या बच को पीसकर और छानकर इस चूर्ण में शहद मिला लें। इससे रोजाना जीभ को मलने से जीभ की कड़वाहट दूर होती है।

यात्रा में उबकाई:- 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को बतासे पर डालकर मुंह में रखने से यात्रा में उबकाई नहीं आती है।

वमन (उल्टी):- दालचीनी को पीसकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।
गर्मी के कारण अगर उल्टी हो रही हो तो दालचीनी को पीसकर शहद में मिलाकर चाटने से लाभ होता है।
दालचीनी के 1 से 2 ग्राम चूर्ण को 3 बराबर भाग में करके शहद से दिन में 3 बार लेने से उल्टी बंद हो जाती है।
दालचीनी के तेल की 5 बूंदे ताल मिश्री के चूर्ण या बताशे में डालकर खाने से पेट का दर्द और उल्टी आने का रोग दूर हो जाता है।

कैंसर रोग:- दालचीनी कैन्सर में अधिक दी जाती है। दालचीनी का तेल 3 बूंद रोजाना 3 बार दें। साथ ही दालचीनी चबाते रहने का निर्देश दें। यदि घाव बाहर हो, तेल लगाना सम्भव हो तो दालचीनी का तेल लगाते भी रहें। यह प्रतिदूषक, व्रणशोधक, व्रणरोपक और रोगाणुनाशक भी है।
दाल चीनी का काढ़ा रोजाना 350 ग्राम पीने से कैंसर रोग में राहत मिलती है।
2 चम्मच शहद में 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर रोजाना 3 बार चाटने से सभी प्रकार के कैंसर नष्ट हो जाते हैं।

नपुंसकता:- 75 ग्राम दालचीनी को पीसकर छान लें। इस 5 ग्राम चूर्ण को पानी में पीसकर सोते समय लिंग पर सुपारी (लिंग का अगला हिस्सा) छोड़कर लेप करें और 2-2 ग्राम सुबह-शाम दूध से लें। इससे कुछ ही समय में नपुंसकता के रोग से मुक्ति मिल जायेगी ।

दस्त:- 10 ग्राम दालचीनी, 10 ग्राम कत्था और 5 ग्राम फुलाई हुई फिटकरी को अच्छी तरह पीसकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 से 3 बार पानी के साथ पीने से दस्तों के रोग में लाभ होता है।
2 ग्राम दालचीनी का बारीक चूर्ण बनाकर ताजे पानी के साथ प्रयोग करने से अतिसार यानी दस्त की बीमारी से रोगी को तुरन्त आराम मिलता है।
दालचीनी का काढ़ा बनाकर रोजाना सुबह और शाम सेवन करने से दस्त आना बंद हो जाते हैं।
2 ग्राम बारीक दालचीनी और 5 ग्राम सौंफ को मिलाकर खाने से दस्तों में लाभ मिलता है।
दालचीनी, जायफल और खैरसार को पीसकर छोटी-छोटी गोली बनाकर रख लें, फिर इसी बनी गोली को प्रयोग करने से दस्त के कारण शरीर में आई कमजोरी समाप्त होती है।
2 ग्राम बारीक पिसी हुई दालचीनी पानी के साथ सेवन करने से दस्त आना बंद हो जाता है अथवा दालचीनी और कत्था बराबर मात्रा में लेकर पीसकर आधा चम्मच रोजाना 3 बार सेवन करने से भी दस्त बंद हो जाते हैं।
दालचीनी, चुनिया, गोंद और अफीम को मिलाकर छोटी-छोटी गोली बनाकर खुराक के रूप में प्रयोग करने से अतिसार (दस्त) में लाभ मिलता है।

गर्भवती स्त्री की उल्टी:- 1 से 3 बूंद दालचीनी का तेल सुबह-शाम मिश्री के साथ सेवन करने से वमन (उल्टी) होना बंद हो जाती है।

आमातिसार:- दालचीनी का काढ़ा बनाकर रोजाना 2 से 3 बार सेवन करने से आमातिसार (ऑवयुक्तदस्त) का रोग दूर हो जाता है।

संग्रहणी (पेचिश):- दालचीनी का काढ़ा रोजाना 3 बार सेवन करने से संग्रहणी अतिसार के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

गुर्दे के रोग:- दालचीनी का चूर्ण बनाकर 1 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ खाने से गुर्दे का दर्द दूर हो जाता है। 
* दालचीनी को खाने से गुर्दे की सूजन भी समाप्त जाती है।

एड्स:- दालचीनी एड्स के लिये बहुत ही लाभदायक होती है क्योंकि इससे खून के सफेद कण की वृद्धि होती है, जबकि एड्स में सफेद कण का कम होना ही अनेक रोगों को आमन्त्रित करता है। साथ ही पेट के कीड़े साफ करने, घाव को भरने एवं ठीक करने के गुणों से युक्त होता है। दालचीनी का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में अथवा तेल 1 से 3 बूंद की मात्रा में रोजाना 3 बार सेवन करें।

नजला:- 7 काली मिर्च और 7 बताशों को 250 ग्राम पानी में डालकर पकाने के लिये रख दें। पकने के बाद यह पानी 1 चौथाई बाकी रह जाने पर एक शीशी में भरकर रख लें। इस पानी को 2 दिन तक सुबह खाली पेट और रात को सोते समय पीने से नजला बिल्कुल ठीक हो जाता है।
इसके साथ ही जुकाम, खांसी और हल्का-सा बुखार या शरीर का दर्द भी दूर हो जाता है। इसको पीने से पसीना भी बहुत आता है और पसीना आने के साथ ही शरीर का भारीपन समाप्त होकर शरीर हल्का हो जाता है।

रक्तप्रदर:- रक्तप्रदर में 1 से 3 बूंद दालचीनी का तेल अशोकारिष्ट के प्रत्येक मात्रा के साथ रोजाना 2 बार लेने से गर्भाशय की शिथिलता कम होती है और रक्तप्रदर भी ठीक हो जाता है। रक्तप्रदर में दालचीनी चबाने को भी देना चाहिए।

रक्तपित्त:- मुंह या फेफड़ों से बहने वाले खून में दालचीनी के काढ़े का रोजाना प्रयोग करने से लाभ होता है।

नींद न आना (अनिद्रा):- लगभग 125 मिलीलीटर पानी में 3 ग्राम दालचीनी को खूब उबालें। फिर इसको छानकर इसमें 3 बताशे डालकर हल्का गर्म करके सुबह के समय पिलाने से नींद अच्छी आती है।

वीर्य के रोग:- 20 ग्राम दालचीनी को पीसकर इसमें 20 ग्राम चीनी मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध से लेने से वीर्य के रोग ठीक हो जाते हैं।
5-5 ग्राम दालचीनी और काले तिल को पीसकर शहद में मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें और संभोग से 2 घंटे पहले एक गोली गर्म दूध से लें।
3 ग्राम दालचीनी के चूर्ण को रात में सोते समय गर्म दूध के साथ खाने से वीर्य की वृद्धि होती है।
* दालचीनी के तेल में 3 गुना जैतून का तेल मिलाकर शिश्न पर लगाने से मर्दानगी लौट आती है। ध्यान रहे कि इस पर ठण्डा पानी न पड़े।
* दालचीनी का चूर्ण बनाकर 1 चम्मच की मात्रा में खाना खाने के बाद रोज दो बार दूध के साथ लेने से वीर्य के रोग में लाभ होता है।

प्रसव आसानीपूर्वक होने के लिए:- 1-1 चम्मच दालचीनी और सौंफ को 200 मिलीलीटर पानी में उबालें जब यह एक चौथाई रह जाये तो इसे ठण्डा करके पीने से प्रसव आसानी से हो जाता है।

योनि का दर्द:- 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को बताशे पर डालकर रोजाना सुबह और शाम सेवन करने से योनि का दर्द समाप्त हो जाता हैं।

पेट में दर्द: – 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को मिश्री के साथ सेवन करने से पेट के दर्द में लाभ मिलता है।
* दालचीनी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें थोड़ी-सी हींग मिलाकर 250 ग्राम पानी में डालकर उबालकर ठण्डा कर लें, फिर इसमें से थोड़ी-सी मात्रा में दिन में 3 से 4 बार रोगी को पिलाने से पेट के दर्द में लाभ मिलता है।
* 2 ग्राम दालचीनी में थोड़ी-सी हींग और कालानमक मिलाकर सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।
* दालचीनी थोड़ी मात्रा में और हींग को लगभग 1 गिलास पानी की मात्रा में उबालकर रख लें। इस बने घोल को दिन में 2 बार 4-4 चम्मच की मात्रा में पीने से पेट के दर्द में आराम होता है।
* दालचीनी और नागदोन के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से पेट के रोग कम होते जाते हैं।
* दालचीनी को थोड़ी मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है। ध्यान रहे कि इसका अधिक मात्रा में प्रयोग नुकसानदायक हो सकता है।
* शहद और दालचीनी बराबर मात्रा में मिलाकर रोजाना 1 चम्मच सेवन किया जाए तो पेट दर्द, गैस, पेट के घाव, पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।

बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना):- 10 ग्राम दालचीनी को पीसकर इसमें 10 ग्राम चीनी मिला लें और इसे पानी के साथ 2 ग्राम रात को सोते समय लें। इससे बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना) के रोग में लाभ होता है।
दालचीनी को पीसकर सोते समय पानी से लेने से पेशाब का बार-बार आना कम हो जाता है।
10 ग्राम पिसी दालचीनी में, 10 ग्राम चीनी मिलाकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में रात को सोते समय पानी से लेने से पेशाब के बार-बार आने के रोग से छुटकारा मिलता है।

हैजा:- दालचीनी, तेजपात, रास्ना, अगर, सहजना, कड़वा कूठ, बच तथा शतावर-इन सबको बराबर मात्रा में नींबू के रस में बारीक पीसकर हैजा के रोगी के पेट पर लेप करने से दर्द सहित हैजा ठीक हो जाता है।

हाथ और पैरों की ऐंठन:- हाथ-पैरों की ऐंठन के रोगी को दालचीनी का तेल 1 से 2 बूंद रोजाना सेवन कराने से लाभ मिलता है।

सिर का दर्द:- दालचीनी को पीसकर पानी के साथ सिर पर लेप की तरह से लगाने से ठण्डी हवा लगने से या सर्दी में घूमने से या ठण्ड लगने से होने वाला सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
* पित्तज या गर्मी के कारण होने वाले सिर के दर्द में दालचीनी, मिश्री और तेजपात को चावलों के पानी में पीसकर सूंघने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
* लगभग 5 या 6 बूंद दालचीनी के तेल को 2-3 चम्मच तिल के तेल में मिलाकर मालिश करने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
* दालचीनी को पानी में रगड़कर माथे पर लेप करने से सिर दर्द और तनाव दूर हो जाता है।
* सर्दी के कारण सिरदर्द होने पर पानी में दालचीनी पीसकर गर्म करके ललाट और कनपटी पर लेप करने से लाभ होता है।

नाड़ी का दर्द:- 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को सुबह-शाम मिश्री के साथ मिलाकर लेने और इसके तेल से नाड़ी दर्द में मालिश करने से सभी प्रकार के दर्द खत्म होते हैं।

यादाश्त कमजोर होना:- बराबर मात्रा में दालचीनी और मिश्री को लेकर पीसकर इसका चूर्ण बनाकर कपड़े में छान लें इसे रोजाना 3-4 ग्राम दूध के साथ लेने से याददाश्त मजबूत हो जाती है और भूलने की बीमारी दूर हो जाती है।

कण्ठरोहिणी:- दालचीनी के काढ़ा का अभ्यान्तरिक सेवन और गरारे करने से गले की जलन और संक्रमण दोनों रोग समाप्त हो जाते हैं।

बालरोगों की औषधि:- दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता और नागकेसर को बारीक पीसकर और छानकर गाय के गोबर के रस और शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों की वमन (उल्टी) बंद हो जाती है।

शरीर को शक्तिशाली बनाना:- दालचीनी को बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। शाम को इसके लगभग 2 ग्राम चूर्ण को 250 मिलीलीटर दूध में डालकर 1 चम्मच शहद में मिलाकर पीने से शरीर की ताकत के साथ साथ मनुष्य के वीर्य में भी वृद्धि होती है।

पेचिश:- लगभग 2 ग्राम पिसी हुई दालचीनी को ठण्डे पानी से फंकी लेने से दस्त बंद हो जाते हैं। गर्म पानी से लेने से पेचिश में लाभ होता है।
* दालचीनी और सफेद कत्था (पान में लगाने का) बराबर मात्रा में पीसकर आधी चम्मच की फंकी 3 बार रोजाना ठण्डे पानी से लेने से अपच के कारण बार-बार होने वाले दस्त बंद हो जाते हैं। यह शहद में मिलाकर भी ले सकते हैं।
* 2 ग्राम दालचीनी और 2 ग्राम लौंग को पीसकर आधा गिलास पानी में उबालें इस पानी की दो-दो घूंट हर 1-1 घंटे के अन्तर से रोगी को पिलाने से पेचिश के रोग में लाभ मिलता है। इस प्रयोग से मल बंधकर आता है बार-बार शौच के लिए नहीं जाना पड़ता है। पेचिश व दस्त दोनों में यह लाभकारी होता है।

सांस में बदबू:- सांसों में आने वाली बदबू के लिए वाष्पीकृत, सल्फर यौगिक उत्तरदायी, होते हैं जैसे- हाइड्रोजन सल्फाइड, मिथाइल, मरकैप्टन आदि। इन यौगिकों के स्रोत में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो ऑक्सीजन के बिना भी जीवित रह सकते हैं। ये बैक्टीरिया मुंह की भीतरी दीवार की कोशिकाओं, जीभ, मसूढ़ों और दांतों की संधि के बीच रहते हैं। 
* सुबह 2 कप पानी में 1 चम्मच शहद, आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर गरारे करने से दिन भर सांस में बदबू नहीं आएगी और ताजगी अनुभव होगी।

कुछ अन्य सरल प्रयोग
  • दालचीनी, कालीमिर्च और अदरक का काढ़ा पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
  • दालचीनी का सेवन करने से अजीर्ण (भूख न लगना), उल्टी, लार, पेट का दर्द और अफारा (पेट में गैस) मिटता है।
  • यह स्त्रियों का ऋतुस्राव (मासिक-धर्म) साफ करती है और गर्भाशय का संकोचन करती है।
  • 1 ग्राम दालचीनी और 5 ग्राम छोटी हरड़ को मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 100 मिलीलीटर गर्म पानी में मिलाकर रात को पीने से सुबह साफ दस्त होता है और पेट की कब्ज दूर होती है।
  • लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग दालचीनी और सफेद कत्थे के चूर्ण को शहद में मिलाकर खाने से अपच (भोजन का न पचना) के कारण बार-बार होने वाले पतले दस्त बंद हो जाते हैं।
  • लगभग 1.20 ग्राम दालचीनी का चूर्ण ताजे पानी से लेने से पेचिश बंद हो जाती है।
  • दालचीनी का तेल 2 से 3 बूंद 1 कप पानी में मिलाकर सेवन करने से इन्फ्लूएंजा, ज्वर (बुखार), ग्रहणी (दस्त), आन्त्रशूल (आंतों में दर्द), हिचकी और उल्टी में लाभ होता है।
  • दालचीनी के तेल अथवा रस में रुई का फाया भिगोकर दुखती दाढ़ या दांत पर रखने से लाभ होता है।
  • दालचीनी, कत्था, जायफल और फिटकरी को मिलाकर उसकी गोटी योनि में रखने से प्रदर रोग मिटता है तथा योनि का संकुचन दूर होता है।